जोर जी चाँपावत ऐतिहासिक कथा व फागण गीत
भारतीय इतिहास ऐसे वीरों से भरा पड़ा है, जिसका कोई लिखित इतिहास ही नहीं है! लेकिन उनके इतिहास को जीवित रखा है,उनके बलिदान ने जिसके चलते भारत के गवों में ऐसे सुर वीरों की गाथाएं गीतों के रूप में गाई जाती है! ऐसे ही शूरवीर में एक थे, जोर जी चाँपावत ( Jorji Champawat ) ऐसी ही एक वीर योद्धा जोर जी चाँपावत का इतिहासिक किस्सा आज हम आपको बता रहे हैं! जिनके गीत होली के समय पूरे राजस्थान में सॉव से गाए जाते हैं!
जोरजी चम्पावत का अनसुना किस्सा
जोर जी नागौर जिले के कसारी गांव के चाँपावत राजपूत थे! जो जायल से 10 किलोमीटर खाटू सान्जू रोड़ पर आया हुआ है! इस गांव में आज भी वीर जोर जी चाँपावत की छतरी बनी हुई है!
जोर जी चंपावत चौड़ी छाती, लंबी भुजाएं 8 फुट लंबे, एक हट्टा कट्टा वीर योद्धा था! जिसकी दहाड़ से अच्छो अच्छों की पतलून गीली हो जाती थी एक ऐसा शूरवीर योद्धा था!
जो जोधपुर दरबार के मुख्य सरदार में से एक थे! बात उस समय की है, जब जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय विराजमान थे महाराजा जसवंत सिंह जी द्वितीय 1873 से 1895 तक जोधपुर के शासक थे!
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यह बात 1890 के आसपास की है! एक दिन जोधपुर रियासत का दरबार सजा हुआ था! उसमें सभी राव उमराव सरदारों से भरा हुआ था!
उसी समय ढोल नगाड़ों के साथ एक आवाज दी जाती है की, मारवाड़ धनी, महाराज धीराज, जसवंत सिंह जी पधार रहे हैं!
और उसी समय महाराज के सम्मान में समस्त दरबारी खड़े होकर जोधपुर दरबार का स्वागत करते हुए खम्मा हुकुम कहते हैं!
उसी समय एक बंदूक लाकर महाराज को पेश की जाती है! यह बंदूक महाराज को इंग्लैंड से भेंट आई हुई थी, महाराज जसवंत सिंह जी उस “थ्री नॉट थ्री” बंदूक का दरबार में बढ़-चढ़कर वर्णन कर रहे थे!
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वहां उपस्थित सभी लोग वाह-वाह करने लगे क्योंकि राजा की बंदूक हमेशा इक्कीस होती है!
उसी समय जोर जी को चुपचाप बैठे देख जसवंत सिंह बोले जोर जी यह बंदूक सात समुंदर पार इंग्लैंड से आई है! आप इसके एक फायर से हाथी जैसे जानवर को मार सकते हैं!
तभी जोर जी दरबार में खड़े होकर शेर जैसी गर्जना के साथ जवाब देते हैं, की हुकुम घास खाने वाले जानवर को मारना कोई बड़ी बात नहीं है!
महाराजा जोर जी की हुंकार को सुनते हुए फिर बोले जोर जी इस बंदूक की एक गोली शेर को भी मार सकती है!
जोर जी उसी अंदाज से मुस्कुराते हुए बोले हुकुम शेर कोई बड़ी बल्ला नहीं होती शेर तो जंगल का जानवर है! इसे मारना कोई मुश्किल काम नहीं है!
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जसवंत सिंह जी, जोर जी की ऐसी बातें सुनकर गुस्से से लाल हो गए, और जोर से बोले कि जोर जी आखिर आप कहना क्या चाहते हैं! दरबार में साफ-साफ कहें
इस बात को लेकर जोधपुर दरबार और जोर जी के बीच कहासुनी हो गई
तब जोधपुर दरबार ने कहा तुम वीरता की ऐसे ही डींगे हांकते हो अपनी वीरता का कभी परिचय तो दो,
तभी जोर जी दरबार के बीचो बीच खड़े होकर कहते हैं! की मेरे पास यह बंदूक और मेरे मनपसंद का घोड़ा हो तो मुझे कभी कोई पकड़ नहीं सकता साहे आपका पूरा मारवाड़ मेरे पीछे लगा लेना,
तभी महाराजा जसवंत सिंह जी जोर जी को वह बंदूक और उनके मनपसंद का घोड़ा देते हुए बोलते हैं! कि जोर जी तीन दिन तुम्हारे और चैथा दिन मेरा यह बात सुनते ही जोर जी वहां से निकल गए!
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उन्होंने मारवाड़ में जगह-जगह अमीरों के यहां डाका डालना और लूटा हुआ धन गरीबों में बांटना चुरू कर दिया!
इस प्रकार उन्होंने जोधपुर दरबार के नाक में दम कर दिया, जोधपुर की फौज ने पूरी ताकत लगा दी पर जोर जी को पकड़ नहीं सके!
तभी जसवंत सिंह ने आसपास की रियासतों से मदद ली पर जोर जी को कोई पकड़ नहीं पाए
“चाॅपा थारी चाल औरा ने आवे नी,
बावन रजवाडा लार तू हाथ ना आवेनी।”
इसलिए जोधपुर दरबार ने जोर जी पर इनाम रखा कि जो भी उन्हें पकड़ कर लाएगा उनको दस हजार सिक्के ईनाम में दिए जाएंगे!
ईनाम के लालच में आकर जोर जी के मौसी के बेटे भाई, खेरवा के ठाकुर ने जोर जी को अपने घर बुलाया रात को सोने के बाद जोर जी की बंदूक धोखे से वहां से हटवा दी और घोड़े को गढ़ से बाहर निकलवा दिया!
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स्वामी भक्त घोड़े के जोर-जोर से हीन हिनाने की आवाज सुनकर जोर जी की नींद खुलती हैं! और अपनी बंदूक भी वाह से गायब मिलती है!
तभी जोर जी (Jorji Champawat ) को पूरी कहानी समझ में आ जाती है कि मेरे साथ धोखा हो गया मौसेरा भाई धोखा बाज निकला
सिंह गर्जना करता नंगी कटार लेकर बाहर निकले तभी खेरवा के सिपाहियों ने जोर जी को चारों ओर से घेर लिया, पर जोर जी ने अपने कटार से सभी सिपाहियों को यमलोक भेज दिया ! तभी खेरवा ठाकुर को अपनी मौत नजदीक आती देख उसी बंदुक से एक फायर जोर जी की पीठ पीछे छोड़ दिया गोली लगते ही घायल शेर की तरह खैरवा ठाकुर पर टूट पड़े एक ही बार सु खैरवा ठाकुर को मौत की नींद सुला दिया!
फिर जोर जी ने अपने खून का पिंड बनाकर अपने हाथों से पिंडदान कर स्वर्गवास सिधार गए
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यह बात महाराजा जसवंत सिंह को पता चलती है! तो उनको बहुत दुख हुआ और कहा कि जोर जी को जिंदा पकड़ना था और अपनी करनी पर पछतावा भी किया
जोर जी हमेशा अपने से बड़े बलवान से ही लोहा लेते कभी किसी निर्दोष और गरीब पर अपनी ताकत का परिचय नहीं देते वह हमेशा जोधपुर दरबार के स्वामी भक्त सरदारों में से एक थे !
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