Thakur Kesari Singh राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास में बारहठ परिवार का अद्भुत योगदान है! एक ऐसा परिवार है! जिसके प्रत्येक सदस्य ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी गतिविधियों में व्यक्तिगत सक्रिय भूमिका रही है!
श्री
केसरी सिंह बारहठ प्रसिद्ध राजस्थानी कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे! यह राजस्थान के
चारण परिवार से थे! जिनका जन्म 21
नवंबर 1872 को शाहपुरा रियासत के देवपुरा गांव
में श्री कृष्ण सिंह बारहठ के परिवार में हुआ था! उनकी शिक्षा उदयपुर में हुई थी!
उन्होंने बंगला, मराठी, गुजराती, आदि भाषाओं के साथ इतिहास, मनोविज्ञान, खगोल शास्त्र, तथा ज्योतिष, सहित कई विषयों एवं भाषाओं का ज्ञान था!
केसरी
सिंह बारहठ ने राजस्थान के लोगों को शिक्षा के द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागृत
करने और उन्हें संगठित करने का कार्य किया!
केसरी
सिंह का पूरा परिवार पुत्र प्रताप सिंह छोटा भाई जोरावर सिंह और उनका दामाद ईश्वरी
सिंह सभी क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित थे! उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता
सेनानियों की हथियारों एव अन्य वस्तुओं द्वारा भी सहायता की थी! और भरपूर समर्थन दिया!
ठाकुर
केसरी सिंह देश के शीर्ष क्रांतिकारियों रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचंद, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, अर्जुन लाल सेठी, राव गोपाल सिंह खरवा आदि से घनिष्ठ
संबंध थे! उनके द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को सहायतार्थ हथियार उपलब्ध कराएं गए
थे!
सन्
1903 में उदयपुर रियासत के राजा फतेह सिंह
ने लार्ड कर्जन द्वारा बुलाई गई बैठक में भाग लेने से रोकने के उद्देश्य से
उन्होंने " चेतावनी रा चुंगट्या " नामक सोरठे रचे जिस से प्रभावित होकर
राजा फतेह सिंह ने इस बैठक में भाग नहीं लिया!
सन्
1912 मे राजपूताना में ब्रिटिश सी आई डी
द्वारा जिन व्यक्तियों पर निगरानी रखी जाती थी! उसमें केसरी सिंह बारहठ का नाम
राष्ट्रीय सूची में सबसे ऊपर था!
शाहपुरा
के राजा नाहर सिंह के सहयोग से 2 मार्च
1914 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया और
प्यारेलाल नामक साधु की हत्या और दिल्ली लाहौर षड्यंत्र केस में राजद्रोह का आरोप
लगाया गया!
केसरी
सिंह को 20 वर्ष का कारावास दे दिया गया! बाद में
बिहार के हजारीबाग जेल में डाल दिया!
जिस
दिन केसरी सिंह को गिरफ्तार किया गया था! उसी दिन से उन्होंने अन्न जल त्याग दिया!
उन्हें भय था कि अंग्रेज गुप्त बातें उगलवाने के लिए कोई चीज ना खिला दें जिससे कि
उनका मस्तक विकृत हो जाए!
हजारीबाग
जेल से उन्हें अप्रैल,
1920 में मुक्त किया
गया! जेल से छूटने के बाद आबू के गवर्नर जनरल को केसरी सिंह बारहठ ने एक पत्र में
लिखा, उन्होंने भारत की रियासतों एवं
राजस्थान के लिए एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की एक योजना प्रस्तुत की!
जेल
से मुक्ति के उपरांत वर्ष 1920-21 में सेट जमनालाल बजाज के बुलावे पर
केसरी सिंह वर्धा गए! वहां विजय सिंह पथिक के साथ मिलकर "राजस्थान
केसरी" नामक साप्ताहिक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया!
वर्धा
में केसरी सिंह बारहठ महात्मा गांधी के संपर्क में आए! और डॉक्टर भगवानदास, पुरुषोत्तम टंडन, पुरुषोत्तम बाबू, गणेश शंकर विद्यार्थी, चंद्रधर शर्मा, राव गोपाल सिंह खरवा, माखनलाल चतुर्वेदी, अर्जुन लाल सेठी आदि वर्धा में उनके
अन्य साथीगण रहे!
केसरी
सिंह योगी पुरुष के रूप में जाने जाते थे! उनके प्रमुख ग्रंथ प्रतापसिंह चरित्र, रूठी रानी, कुसुमांजलि, दुर्गादास चरित्र इत्यादि रहे है! यह डिंगल भाषा के कवि थे!
7 अगस्त 1941 को कवि रविंद्रनाथ टैगोर का देहांत हो गया! यह खबर जब केसरी सिंह
बारहठ को उनके डॉक्टर द्वारा सुनाई गई तो उन्होंने कहा कि अब तो कवियों का दरबार
ऊपर ही लगेगा!
महान
कवि टैगोर की मृत्यु के 7 दिवस पश्चात ठाकुर केसरी सिंह का
देहांत हो गया वह क्रांतिकारी कवि थे! जिन्होंने राष्ट्र की आजादी के लिए अपना
सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था!
जोरावर सिंह बारहठ
ठाकुर
केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ एक साहसी क्रांतिकारी थे! इनका जन्म 12 सितंबर 1883 में उदयपुर में हुआ
पिता
कृष्णसिंह बारहठ इतिहासकार एवं साहित्यकार थे! इनके बड़े भाई केसरी सिंह बारहठ
देशभक्त क्रांतिकारी विचारक एवं कवि थे! उनकी प्रारंभिक शिक्षा जोधपुर में हुई
उन्होंने महलों का वैभव त्यागकर स्वाधीनता आंदोलन को चुना!
उनका
विवाह कोटा रियासत के ठिकाने अतरालिया के सारण ठाकुर तख्त सिंह की बेटी अनोप कवर
से हुआ! उनका मन वैवाहिक जीवन में नहीं लगा
उन्होंने
क्रांति पथ चुना! और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई!
रासबिहारी
बोस ने लार्ड हार्डिंग्ज बम कांड को मूर्त रूप देने के लिए जोरावर सिंह और प्रताप
सिंह (भतीजा) को बम फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी
23 दिसंबर 1912 को वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज का जुलूस
दिल्ली के Chandni Chowk से
गुजर रहा था! चांदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत पर भीड़ में जोरावर सिंह और
प्रताप सिंह बुरके में थे!
जैसे
ही जुलूस सामने से गुजरने लगा, जोरावर सिंह ने हार्डिंग्ज पर बम फेंका लेकिन एकाएक पास खड़ी महिला बीच मे आ
गाई और
बम महिला से
टकरा जाने से निशाना चूक गया और होर्डिंग्ज बच गया!
छत्ररक्षक
महावीर सिंह मारा गया! आजादी के आंदोलन की इस महत्वपूर्ण घटना ने ब्रिटिश
साम्राज्य की नींव को हिला दिया! जोरावर सिंह और प्रताप सिंह भीड़
का फायदा उठाते हुये
वहां से सुरक्षित निकल गए!
इस
घटना के पश्चात जोरावर सिंह मध्यप्रदेश के कंरडिया एकलगढ़ में साधु अमरदास वैरागी
के नाम से छिपे रहे!
जोरावर
सिंह को वर्ष 1903 से 1939 तक 36 वर्ष तक की अवधि में अंग्रेज सरकार Arrested नहीं कर सकी 17 अक्टूबर 1939 को उनका निधन हो गया! उनकी याद में
एकलगढ़ (मध्यप्रदेश) में उनका स्मारक बना हुआ है!
प्रताप सिंह बारहठ
15 वर्ष की आयु में उन्हें स्वतंत्र
शिक्षण के लिए देशभक्त श्री अर्जुन लाल सेठी के पास भेज दिया गया! फिर प्रताप को
अपने बहनोई ईश्वर दान आशिया के साथ वहां के प्रसिद्ध देशभक्त मास्टर अमीचंद जी के
यहां क्रांतिकारियों की शिक्षा दीक्षा के लिए दिल्ली भेजा गया!
अमीचंद
जी के पकड़े जाने के बाद सेठी जी इन दोनों को वापस ले आए अपने पिता के पकड़े जाने
के एक सप्ताह पहले यह वापस अज्ञातवासी हो गए!
पिता
पर मुकदमा चला, झूठ और छल-कपट से चलाएं मुकदमे में
पिता के धैर्य और साहस को देखकर प्रताप गौरव से भर गए थे! इधर-उधर भ्रमण करते हुए
सिंध से हैदराबाद चले गए!
वहां
से पुनः आने का निर्देश मिला परंतु असानाडा (जोधपुर) में पकड़े गए प्रताप को 5 साल की कठोर सजा दी गई! और बरेली जेल
में अमानवीय यातना का दौर शुरू हो गया उन दिनों जेल की बर्बरता क्रांतिकारियों को
दी जाने वाली यातनाओं को सुनकर हृदय सिहर उठता है!
दंड
व यातना सहते-सहते प्राणों का दीपक बुझने लगा सरकार नहीं चाहती थी! कि क्रांति की सूक्ष्म सिंगारी बाहर निकले
विदेशी सरकार के क्रुर अधिकारियों की यातनाओं को सहते हुए 24 मई 1918 को उनका देहांत हो गया!
प्रताप ऐसे क्रांतिकारी थे जो यातनाएं सहते रहे
परंतु चेहरे पर कोई पीड़ा नहीं दिखाई पड़ी मातृभूमि का सच्चा सपूत स्वतंत्रता के
खातिर कुर्बान हो गया!
प्रताप अल्पायु में ही शहीद हो गए थे! उस परिवार से नाता रखते हैं
जिस
परिवार में अपना पूरा खानदान क्रांति की राह में झोंक दिया था भारत के इतिहास में
अपने पूरे खानदान को राष्ट्रहित पर बलिदान करने वाले में सिख धर्म के दसवें गुरु
गोविंद सिंह का परिवार और राजस्थान के बारहठ परिवार को सदा याद किया जाता रहेगा!
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